सद्भावना संदेस 
                        दूहा 
मिलजुल रहणो मानखे, बणा हेत व्यवहार। 
परमेसर परिवार है, सारो ही संसार।।1।। 
राजी हुयसारा रहो, अवर बणावो आभ। 
मिनखा तन मुसकिल मिलै, लेवो इणरो लाभ।।2।। 
जलम मरण सब ही जगां, हाल एकसो होय। 
रगत नाडियां में रमे, सारा रे हिक सोय।।3।। 
थारी म्हारी ना थिरा, ऊँचा नीच ना ौर। 
सारा मिनख समान हैं, झांको हिरदे जो'र।।4।। 
राली झूठी रूढ़ियां, वले अंधविश्वास। 
इणकारण ना ेकता, बणियो काज बिणास।।5।। 
हिन्दु मुसलिम सिक्ख हो, जैन ईसाई जो'र। 
धरम ेकसो है धरा, बणिया आत्मा विभोर।।6।। 
सतवादी अर सनेब रो, भगती भाव बिसेस। 
धरम सबै दीधो धरा, सद् पथ रो सँदेस।।7।। 
गुरु अल्लाह ईसर गुणाँ, भगतां किया बखाण। 
बनै जिको जिणरो बणै, सारा धरम समांण।।8।। 
बणिया स्वारथ बासते, इसड़ा पंथ अनेक। 
जोवो दर दर जगत में, ईश्वर तो है एक।।9।। 
लड़ो भिड़ो क्यूं लोक में, अरे धरम री ओट। 
लड़वा री किण में लिखी, किसा धरम में खोट।।10।। 
पढ़िया लिखिया मूरख पथ, जांण बणायो जोग। 
पसुवा जिम व्यवहार पर, आज उतारू लोग।।11।। 
आंख्या काडो ना इसी, दूजां देख दीदार। 
जीवण रो हक जगत में, सारां नैं इकसार।।12।। 
बतन मुलक चित में बसे, करे देस हित कोड। 
वतन हेत रे बासते, छद्म कपट दो छोड।।13।। 
जातवाद रा जोर मे,ं घाले मिनखां घाव। 
भलो देस रो भलूगा, भूंडा मिनखां भाव।।14।। 
धरम नांव पर सह धा, हुयगा टूक हजार। 
पले धरम धती परे, बिन धरती बेकार।।15।। 
खाता पीतां खलक में, इसड़ो हुवो अजीण। 
लड़े धायोड़़ा लोक में, कोजी आपत कीण।।16।। 
हिंसा कर कर हात सूं, फरजी किरतब फूं'ड़। 
राले इसड़ा रासते, धरम नांव पर धूड़।।17।। 
मान करे ना मुलक रो,टुकड़ा करण तयार। 
बात बिगाड़े बतन री, धिक धिक वां धिक्कार।।18।। 
कोजा स्वारथ कारणै, लड़े धरा पर लोग। 
हालत आच्छी ना हुवे, जांण बिणासी जोग।।19।। 
अपणै स्वारथ ऊपरां, गलो काट दै गैर। 
दुख इसड़ा घमा देवसी, खलकां रहे न खैर।।20।। 
पण क्यूं बांधौ पापरा, ऊपर भार अनेक। 
मरणौ सबनै मानखै, अमर रहे ना एक ।।21।। 
धरम जात छैत्री धा, छोडो सारा छौर। 
आखां समझो एक सा, दिपसी आणंद दौर।।22।। 
बाइबल री प्रभा बढ़ी, गीता बढ़ोज ग्यान। 
कुराणसरीफ ्ल्लाह कथी, सारा धरम समान।।23।। 
गुरु ग्रन्ंथ साहिब घम, दया भाव दरसाय। 
नेकी नेह रखमओ नरां, सांचा भाव सिखाय।।24।। 
                      पावन धर धती परे, मिन्दर तीरथ मांण। 
आंरी आयर ओट में, हत्या करो न हाँण।।25।। 
कीड़ी सम समझो कियां, मिनखा तन रो मोल। 
मिनख पणो रखमो मनां, करो न झूठा कोल।।26।। 
कुण हिन्दु मुसलिम कवण, कवण सिक्ख री कोम। 
भारत रा सह भारतीय, बिबिधा में हिक भोम।।27।। 
अनेकता में एकता, आ भारत री आब। 
मेटण रा कीकर मनां, खोटा देखो ख्वाब।।28।। 
सिक्ख हिन्दु मुसलमि सबां, चाल धरम री चाव। 
रे मिनखां मिल राखणो, संप्रदाय सद्भाव।।29।। 
मिलवा में सब कुछ मिलै, है बिखरण में हांण। 
फूट करावे फायदो, जोर दुसमणां जांण।।30।। 
आपस में व्हे एकता, दुसमी लगे न दाव। 
फूट रोग जद फेलवे, इणरों नांय उपाव।।31।। 
बंग पंजाब गुजरात बहु, कर्नाटक कसमीर। 
असम राजस्थान अख, सारो भारत सीर।।32।। 
आन्ध्र, मध्य, उत्तर अरू, प्रबल घणा प्रदेस। 
करो सबां में एकसा, दरसण भारत देस।।33।। 
भारत म्होर म्हूँ भारतीय, नांही दूजौ नाम। 
अन धन धरती धरम अर, चित ओही आही चाम।।34।। 
मायड़ भोम महान् है, हूं मतित हमेस। 
अपणा स्वारथ कारणै, दहूं हाँण ना देस।।35।। 
भासा मजहब रे विचै, करणो नाय कलेस। 
अपणायत रखणी अवस, दूजां रखो न द्वेस।।36।। 
हंसी उडावे हिन्दी री, गुण पर नांय गरुर। 
दोरा लागै देस नै, पापो कटसी पूर।।37।। 
क्षेत्रवाद नै छोड दे, भेद भाव ज्या भूल। 
सारा नै अपणा समझ, इसड़ो राख उसूल।।38।। 
करणो धरणो कोड़ सूं, मरणो जीणो मांण। 
हाजर रहणो देस हित, जलम सफल नर जाण।।39।। 
                      नेकी-निकेत 
                        दूहा 
पुरसारथ उपकार  पग, धरम  अरु तप ध्यान। 
सह ग्यानी ध्यानी समो, नेकी वालौ नाम।।1।। 
सतजुग तेता आद सूं, द्वापररै  दौराण। 
छिता न नेकी छोडता, पुरसां  जब लग प्राण।।2।। 
नेक जीवण निभावता, चित में रहतो चाव। 
नेकी रे वसीभूत हा, रंक देव अरु राव।।3।। 
सतनेकी राखी, सदा, हरिसचन्द्र  हुल्लास। 
दुख सहिया बहिया दुनी, पूरण  जस प्रकास।।4।। 
दियो दधीजी देह रो, काट  हाड कट्टार। 
हाड रिच्छा देवां हुई, दिपै  नेक दातार।।5।। 
बापू माँ बैठाय के, सरवण  कावड़ साथ। 
पथ पीड़ा तीरथ पगां, हीड़ा  नेकी हाथ।।6।। 
सिवी नृप बाजनै,  तोड़ मांस निज तन्न।।7।। 
बंधिया नेकी  बंधणा, दसरध  बचनां दास। 
सुतना राम लिछमण समा, बचन  दिया बनवास।।8।। 
बरस चवदे बनवास में, भटक्या  दर दर बीर। 
पुरसोत्तम नेकी  पगै, सहिया  कस्ट सरीर।।9।। 
जुधिस्ठर पांडव  जबर, अमर  नेक अवतार। 
सह देही गइया सुरग, पूग  हिमालै पार।।10।। 
ऐ बातां ही आद री,  कलजुग अवै करार। 
नेकी बहणो नरां ! है, धरा  खाग री धार।।11।। 
बदनेकी ठहकी  बढ़ै, नेकी  दिन दिन नास। 
अंधकार होसी  अधिक, पुरसां  नहीं प्रकास।।12।। 
रतनां में सिरे रतन, पौर  आठ में प्रात। 
सह रूत में बसंत सम,  आ नेकी अवदात।।13।। 
सच्चाई सूं  संचरै, उर  में धार ईमान। 
नेकी रे आधीन नर, जोबरलाई  जांण।।14।। 
चित ऊजल नेकी चलण, करणी  कथनी एक। 
पुरसारथ इसड़ा  पुरस, क्रोडां  मांही केक।।15।। 
नेकी सूं रहियां नरां, देस तरक्की द्वार। 
बिन नेकी दिन दिन बढ़ै,  भारी भ्रस्टाचार।।16।। 
तप तीरथ नहँ जोग जप,  दैय सकै ना दान। 
इक नेकी अपणायलो, सारां रे ही समान।।17।। 
मिलै न भायां मुलक में,  दियांज क्रोडां दाम। 
लिखी जिकां न लाधसी, नेकी  ऊजल नाम।।18।। 
फटकै घर घर फैलियो, रिसवत  वालौ रोग। 
इणरो एक उपवा है, नेकी  करे निरोग।।19।। 
आग लगी इल ऊपरां, भभकै  भ्रस्टाचार। 
नेकी हंदा नीर सूं, बुझसी  बेग बजार।।20।। 
हुयांज होडा  होडा में,  गेली धन रे गैल। 
नेकी धारम वे नहीं, खलकै  विगड़ै खेल।।21।। 
भ्रस्टाचार सरवर  भर्यो, लाखूं  डूबै लोग। 
तण नेकी तिराय दे, (जो)  कोई पावण जोग।।22।। 
दुखी आज सह देसरा, सोच  करे सरकार। 
नेकी बिन मिटसी नहीं, बढ़तो  भ्रस्टाचार।।23।। 
अदहीणो बद  आचरण, पातर  रै धन पूर। 
निरधनता धृणित  नहीं-नेकी हंदै नूर।।24।। 
क्रोडां धन्न  कमावियो, कर  कर खोटा काम। 
बत्तो निरधन भाइयां,  नेकी वालौ नाम।।25।। 
बद नेकी रै बीच मे,  हूनर करो हजार। 
ओस नीर उडसी अवस, पड़सी  नांही पार।।26।। 
बहै पसीनो बदन रो, बालौ  व्हे बरताव। 
ते नर भवसागर तरै, नहचै नेकी नाव।।27।। 
बदनेकी प्रासाद  बण, साधन  जतन सवाय। 
नेकी रा आं सूं नरां,  झूपड़ आगै जाय।।28।। 
बदनेकी व्यंजन  बुरा, पूरम  थाया पाप। 
जीमण वाला जीमसी,  पोचा ही परताप।।29।। 
सतवादी सालीनता, दाम केवटू दौर। 
धीर धरम संतोस धर,जां  घर नेकी जोर।।30।। 
सजन अंवेरू सांतरा,  पढ़िया लिखिया पूत। 
जां घर नेकी जोर में,  करे न झूठो कूँत।।31।। 
भायां सूं आच्छी बणे, परवे  बिसा परपूट। 
नेकी धारणियां नरां,  आभा रहे अखूट।।32।। 
प्रगति रो  अवदात पथ,  कट छट ज्यासी क्लसे। 
नेकी अपणायां नरां, दिपसी भारत देस।।33।।                      
                      पुरसारथ-प्रभा 
                        दूहा 
आखी दुनिया आदरै,  बल बुद्धि मुख  बांण। 
चावी होवे चतुरता,  पुरसारथ रे पांण।।1।। 
पुरसारथ सिद्धी  परम, धरम  सिरै औ धाम। 
प्रगति री  पैड़ी प्रथम,  नरां करम रो नाम।।2।। 
कठम काम साधै कवण, आयां  विपदा ौर। 
पुरसारथ कारणपुरस, जिवड़ै थावै जोर।।3।। 
जिणधर पुरसारथ जगै,  इल पर बढ़ै उजास। 
अन धन धीणौ आंणवै, उपजै  आंणद आस।।4।। 
अंधकार घर  आलसी, जग  गत बिगड़ै जास। 
पुरसारथ कराण  बढ़ै, प्रगति  रो प्रकास।।5।। 
जुगत न करवे जगत रा,  भाखे नर बेकार। 
पुरसारथ हीणा  पुरस, आलस  थावै आर।।6।। 
घुसिया रहवे  गूदड़ा, चढियां  रवि न चेत। 
तिका भार धरती तणां, करे  कमाी केत।।7।। 
माचै पड़िया मांगवे,  ताती चाय तयार। 
कुण नाणो धोणो करे, आलसियां  आगार।।8।। 
फौड़े बैठा ना फली, ठाला  रहिया ठूंठ। 
पुरसारथ हीणा  पुरस, जोड़े  बातां झूठ।।9।। 
अन नै झांकै आंखियां, टाबर  रोवे टंक। 
पुरसारथ हीणा  पुरस, दालद  खावे डंक।।10।। 
पड़िया पेट पंपोलवे, भारी मूंछा बंक। 
पुरसारथहीणा पुरस, नींदा दिवस निसंक।।11।। 
नार्यां ठांण  न नीरणी,  गायां भूखी गोर। 
पुरसारथ हीणा  पुरस, दालद  थावै दौर।।12।। 
काम न करे कातीसरे, उझड़े  खेती आर। 
पुरसारथ हीणा  पुरस, तासां, रमणतयार।।13।। 
दूसण ओरां देखणां,  पर निंदा परपूट। 
पुरसारथ हीणा  पुरस, लेवे  अपजस लूट।।14।। 
हुंकारा ज हताइयाँ, मुलकरया  मोट्यार। 
पुरसारथहीणा पुरस, क्लीवां जेम करार।।15।। 
क्रोड़ां री  बातां करै,  हुवै टको न हात। 
बिगड़ै मौके भाइयां,  बिन पुरसारथ बात।।16।। 
जणजण घर विद्युत जुपै,सड़कां गांव समीप। 
पथ जंगल पुरसारथी, दिपवे मँगल दीप।।17।। 
रत पुरसारथ रात दिन, जणजण  कूवा जोय। 
पांणी फसलां पावतां,  हरियाली घर होय।।18।। 
देखो करवे रात दिन, मेहनत  खेतां माय। 
पुरसारथ परताप  सूं, प्रजा  धन अन पाय।।19।। 
बुद्ध जन करे विवेक सूं,  क्रोडां देह कमाय। 
पुरसारथ परताप  सूं, सोभा  बढ़त सवाय।।20।। 
जन बुद्धि री योजना, मेहनत  करे मजूर। 
दोनां री मिलगत दिपै, पुरसारथ  भरपूर।।21।। 
बहे पसीनो बदन रो, भतीर  अडिव बिचार। 
कविजण वांरी कल्पना,  सह व्हेसी साकार।।22।। 
जोखम जो नर झेलवे, पुरसारथ  पथ पाय। 
सहज चढ़े प्रगति सिखर, सारो जगत सराय।।23।। 
प्रफुल्लित चित  पुरसारथी, जीवण  आंणद जोग। 
बिन मेहनत तन दूबलौ, कै  लागै हिव रोग।।24।। 
सिद्धि रिद्धि  सातूं सुख,  प्रगति सांती पाय। 
हिम्मत मेहनत  भाग्य ही,  पुरसारथ परमाय।।25।। 
अणपढ़िया रहिया  अवस, कला  कठै किरसांण। 
क्रोड़ां नर  मौजां करै,  पुरसारथ रै पांण।।26।। 
ऊंची बणी ईमारतां, धीणो घणोे र धान। 
कारज मन चाया करै, पुरसारथ  रै पांण।।27।। 
टूट्योड़ा सह  टापरां, खूंटै  ठांठा खींण। 
निसकारा घर  नारियां, हां, पुरसारथ हीण।।28।। 
नसा कर कर नसावियो, आलस  धार्यो अंग। 
तन पुरसारथ त्यागियो, रुलपट छायो रंग।।29।। 
कुसियो जेम  कबूतरो, ऊंदर  भीना और। 
स्वारथ बिन  सरकै नहीं,  तज पुरसारथ तौर।।30।। 
कपट झूठ छल कद्म कर,साम दाम दण्ड भेद। 
कै ऐ पुरसारथ करै, खरो ज भारत खेद।।31।। 
सासक रखे सच्चाइयां, बदले नांही भेस। 
प्रजा जठै पुरसारथी, दिपै वणां रो देस।।32।। 
अबखी वेला आयगी,  और नहीं आधार। 
भायां,  करो सिन्धु-विपद, पुरसारथ सूं पार।।33।। 
आन बान रहवे ईं सूं,  सांसारिक सनमान। 
आभा पुरसारथ इसी,  दाखी 'लक्ष्मण दान'  ।।34।। 
                      आभ-अनुसासन 
                        दूहा 
आजीवण अपणायके, पढ़ लिख व्हेता पार। 
सारथक जीवण समझता, अनुसासण आधार।।1।। 
बचपन जोबन बीच में, प्रगति व्हे भरपूर। 
अनुसासण अपणावियां, जीवण मांय जरुर।।2।। 
लाड लडावो लाडकाँ, खांणपींण दों खूब। 
बाल अनुसासण बायरा, बाजेला बेकूब।।3।। 
पहला घ सूं ही पड़ै, सह बालक संस्कार। 
सांचो घर संसार में, अनुसासण आगार।।4।। 
बच्चां हेतू बरतवे, लापरवाही लोग। 
कू संस्कारां कारणै, जग में बिगड़ण जोग।।5।। 
गिमत करी नहं गेहरा, लडियो बेथक लाड। 
कम अनुसासम कारणै, बिगड़ होयगी भ्याड।।6।। 
आठ बरस तक उछरियो, चरियो भोजन चाव। 
रहगो अनुसासण रहित, ध्रावा सरिखो ध्राव।।7।। 
घालै पौसालां गलै, अध्यापक आधीन। 
बिगड्योड़ी घर बानगी, कोजी कबजे कीन।।8।। 
धीरे धीरे धारणा, भरे मानखा भाव। 
अध्यापक अनुसासनां, दूजो है दरियाव।।9।। 
करणधार भारत करै, अनुसासण ऊगोय। 
अध्यापक अभ्यास सूं, सुधरै बालक सोय।।10।। 
अध्यापक अभ्यास सूं, जै नीं सुधरै जाय 
माठा करम माईत रा, बालक बणै बलाय।।11।। 
फजीतियां करतो फिर,ै भव फूहड़ भालेह। 
मूरख कीकर मेलियो, अनुसासण आलेह।।12।। 
अति आवस्यक आद सूं, अनुसासण अवनीह। 
बिण इणरे जीणो बुरो, दोरा भारत दीह।।13।। 
पोत्यो गूंदै पैर सूं, लागो दाता लेर। 
बिन अनुसासण बालकां, मूरख पण री मेर।।14।। 
बालक अनुसासण बिना, हालत करे हिरान। 
आय बिगाड़ै आप री, सभा बिचालै सांन।।15।। 
अनुसासण अभाव सूं, खोटा रचवे खेल। 
पाथ बहंतां रै पड़ै, गेरा इसड़ा गेल।।16।। 
सुणै न कोई सम्भलै, केम बतावां काँम। 
बिन अनुसासण बालकां, नकटाई रै नाम।।17।। 
घर घ सहरां गांव में, भूंडो है बदलाव। 
विद्यालय मांय विद्यारथी, अनुसासणां अभाव।।18।। 
बगत पढण री बीच में, बहालक फिरै बजार। 
हिल ज्यावै ऐ होटलां, दुरबिसनी दीदार।।19।। 
पूग्यां नैड़ी परीक्षा, घबराहट हिय घोर। 
बहिस्कार कर वे बिसा, देख विद्यालय दौर।।20।। 
नोकरियां में जां नरां, लापरवाही लीन। 
समय काम न सलटवे, अपजस रै आधीन।।21।। 
अधिकारी दै ओलबा, जारी जनता जोर। 
त्यारी जुंजलहाट तणी, दुखियां भारी दौर।।22।। 
बोलण री गत ना भली, भूंडो है व्यवहार। 
अनुसासण ऊछेरियो, तिकां फजीती त्यार।।23।। 
सुद ना लहे समजा रा, सुक्ख सरीरां खींण। 
अद नहीं आफिस अफसरां, हुयां अनुसासण हीण।।24।। 
बालक बुद्द जवान बल, नोकर अफसर नाम। 
रह दिपवे संसार में, कर अनुसासण काम।।25।। 
माया रो घर मेलवे, नर काया निरोग। 
आयां पथ अनुसासणां, जस थावे सत जोग।।26।। 
मेहनत ाई मानखे, कठण कमाई कीन। 
छाई अनुसासण छबी, दुनी न लाई दीन।।27।। 
गुरु महिमा इणबिन घटै, स्तर पढ़ाई और। 
बिन अनुसासण बालकां, दिन दिन खोटा दौर।।28।। 
ख्याती पाई खेतियां, भारीजस व्यौपार। 
नाम कमावे नौकरी, अनुसासण आधार।।29।। 
खेलां मांही खेलतां, बणे सांत व्यवहार। 
सभी प्रतियोगिता सफल, अनुसासण आधार।।30।। 
लाखूं फोजी लैण में, कारज हुकमी कीन। 
रिच्छा भारत री रखे, अनुसासण आधीन।।31।। 
बाप बहू बेटा बहिन, सगपण न्यात समाज। 
लोकां में आच्छा लगै, अनुसासण सूँ आज।।32।। 
पुरसारथ नेकी परम, अनुसासण ढिग और। 
देसवासी धारो दिलां, दिपसी भारत दौर।।33।।                      
                      मितव्ययता-महिमा 
                        दूहा 
अनुसासण नेकी अवर, पुरसारथ बल पाय। 
मितव्ययता रे मेलसूं, सोभा बढ़त सवाय।।1।। 
अथ सागर रूप इला, जल जिम खरचो जोय। 
तिण में मितव्ययता तरी,कदै न अटकै कोय।।2।। 
तपति जिम खरचा तवां, इल पर अवर उझाड़। 
तर वर मितव्ययता तिमें, आवत जावत आड़।।3।। 
भाखर जिम टाणा बणां, दुरलभ लगे दीदार। 
गेले मितव्ययता गमण, पूगो चोटी पार।।4।। 
खाड़ा जिम खरचे खलक, आडो एक उपाय। 
पाट मितव्ययता पटक, लपकै पार लगाय।।5।। 
बिन सोचे समझे बिना, ऊठै खरच अपार। 
डुल डुल केई डूबगा, धांडाई में धार।।6।। 
धांडाई खोटी धरा, करजो आहि कराय। 
जायदाद सोभा जमी, भचके देत विकाय।।7।। 
धांडाई जो धारली, निवतो लेणे नाम। 
बाड़ा जमीं र बाछड़ा, बेच काडसी काम।।8।। 
नौकरियां दोरी निभै, जम जण मांगै जार। 
मुसकिल जीणो मानखे, धांडाई नै धार।।9।। 
काग दुकानां कूकसी, हाट हवेली हार। 
धांडाई नैं धारियां, बिगड़ै झट बौपार।।10।। 
भांडा ठीकर बेचिया, लेगा चरी लुकार। 
करजां मांय कलीजगा, धांडाई नै धार।।11।। 
धांडाई धारी घणी, वित जल जेम बहाय। 
अड़गो गाडो आखरो, पईसां बिन पछताय।।12।। 
पौसागां सादी पहर, सुलक किताबां साथ। 
मितव्ययता इणही मुजब, हुवै न पोलो हाथ।।13।। 
ओरां होड़ न आंणवी, बहियो घर रे भाव। 
सस्ती विद्या सीखियो, मितव्ययता उणमाव।।14।। 
रोटी रा टोटा रया, हालत पेली हीण। 
मितव्ययता धारी मणां, कारज आणंद कीन।।15।। 
खिमताई कम खरचियो, पढ़ लिख विद्या पूर। 
मितव्ययता धारी मणां, दालद रहसी दूर।।16।। 
खरचो करणो खलक में, आमद रै अनुसार। 
मितव्ययता देवी मणां, सरणाई साधार।।17।। 
नेकी सूं बहणो नरां, भू मितव्ययता भाव। 
आमद संू खरचो अधिक, बद नीति बरताव।।18।। 
सोभा रा भूखा सजण, ऊठै खच अपार। 
रे ऊपर भर रोवसी, दस आंगलियां द्वार।।19।। 
पुन्य बडेरां पांण सूं, मिलियो गहरो माल। 
धांडाई घण धारियां, लाला अनरा लाल।।20।। 
मितव्ययता मुख मोड़ियो, धर धन करियो धूड़। 
सपूत कियां संसार में, फावरिया फल फूड़।।21।। 
आणां टाणां ऊपरां, कम खरचो करवाय। 
दिन सोरा निकलै दुनी, पूछ नहीं पछताय।।22।। 
मितव्ययता सूं मुलक री, विस्व साख बढ़ जात। 
आयात न हुवै अधिक, नफो बढ़े निर्यात।।23।। 
उत्पादन होवे अधिक, ओरूं कम उपभोग। 
मितव्ययता धार्यां मुलक, सदा प्रगति संजोग।                      
                      दहेजी-टीका-दूसण 
                        कवित्त 
रचते स्वयंवर नारी वरण करण नाह,
चिंतव प्रतियोगिता में आते चलायके। 
वीरता ते कलाबाजी दिखाते अनेक वीर,
तीर मारे नैंण मछी बिम्ब पांणी पायके।। 
जीत में अग्रणी वरमाला पाते गल जाय,
करती स्वीकार नारी वर चित्त चायके। 
देखो देखो नारी की कलजुग में दुरदसा,
इच्छा बिना हाय ! मुढ्ढ़ पड़े गल आयके।।1।। 
देते अरु लेते नहीं टीका रू दहेज दोहुं,
फीका नहीं रंक राव सारा ही सरीखा छा। 
मान मरजादा रैती सु विवाह चाह मझां,
ऊजलां विचारां नारी नाह अवनीका छा।। 
ससता सुन्दर रैता सादीरू विवाह सब,
काबिले तारीफ सब तो रुख तरीका छा। 
विदूसी वीरागनाएँ नारी इतिहास रुप,
भुव पवित्र भाव साव भारती का छा।।2।। 
बिकृत बिणास रूप टीका रु दहेज बणै,
हणै पड़़ै कूप ओही कारण पतन रौ। 
रंक ्रू राव सारा ग्रसिया इणी ही रोग,
भोग लेय रह्यो देखो रमणी रतन रौ।। 
कलंकित हुवै आज संस्कृति समाज सब,
धीरे धीरे बणे काज बिनासी वतन रौ। 
आत्महत्या अपराध ओहिज करावे क्लेस,
टीका रु दहेज रिपु जांणिये जतनरौ।।3।। 
सोचे छै विचारे सरकार परिवार सब,
कुरीती छै भयंकर आ हिन्दु समाज री। 
समय री पुकार सुणौ अरे प्रबुद्ध नरां,
नीचि कियां नाखी बात लाखीणी लाजरी।। 
कोसिस कियां ही बिना हिम्मत हारना हाय,
बातड़ी नंसाय रिया भारतीय नाज री। 
देणा ्रू लेणां दोनूं दोस छै टीका दहेज,
हिये सूं हटावो नरां दुविधा समाज री।।4।। 
जलम कन्या रो नर कराण क्लेस जांण,
कांण खांण पांण मांय हाय ! कटुताई है। 
हांण धन तन हुवै माहरो घटेगो मांण,
बांण काडै बाप अरू मारबा री माई है।। 
तात तनुजा रो तकै छोकार ठिकांणा छांण,
घांण घांण फिर परो पोछडी गमाई है। 
बडी बडी बांण बकै बैठो ई बेटा रो बाप,
चरांण गरीबां लागो चावी चतुराई है।।5।। 
पूत पग फेरो घेरो आणंद खुसी रो गिणै,
लाडां कोडां कहे बात कुल की निभावेगो। 
खोसण सगा नै खांण पांण बेटा अच्छो खाय,
पेन्ट पहर सहर पढ़वा खिनावेगो।। 
जीवण स्तर ओरां छोरां दरसावे जोर,
टाबर देखण जद सगो घ आवेगो। 
मूंडा सूं टीका दहेज मांगता न आवे लाज,
माथे बूक मांडी कियां पेट भर पावेगो।।6।। 
रखड़ी टोपस सोने बिलिया बजंटी बौत,
गोतड़ी, मनाज्यो मती जरूरी गैणा है। 
साथै सौ भर चांदी सूंकेवल चलेगो काम,
टदेखो रोकड़ रूपया हजार बीस दैणा है। 
टीवी टेप टेबल कुरस्यां संग सोफा सेट,
बेसड़ा पचास सारा टेरीकोट व्हैणा है। 
इस्टीली समानसारो बराती आवेंगे सज,
करे इसा कोल जिका पिंड सर्प पैणा है।।7।। 
बोले दुस्ट अफंडी घमंडी सिी टीके बात,
सगा पाँच हजार दैणा सैली सरल है। 
ग्यारह इक्कीसी इकतीस अरू इक्यावान,
बावन हजार देय तिका नर भल है।। 
तीस तीस तोला सोने तणीह समाज तौर,
लाखां रो देहज लेय बोले चढ़ बल है। 
कोजा टीका दहेज में कलीजिया सभ्रान्त कुल,
गरीबां ई देखा देखी पीवत गरल है।।8।। 
हाचो हाची हवेलियां लखत लाखां रो लेख,
जमी जायदाद, जोर बोलत बजार है। 
कुपंथी करे किलोल कारां मांय बैठ केई,
मेहफिल उडावे दारू कोजोड़ों करार है।। 
मानै मानै कोड़ी सम बेवतो मिनख मोल,
दूसण हजारूं देखां दोगलो दीदार है। 
सोरा सोरा कर रय सगाी विवाह संग,
टीको रू दहेज सारो तस्करी व्यौपार है।।9।। 
बीसी है टीका री भायां सीसी में उतारे सैंण,
कैण गत झूठी अठै स्वारथी सलूका है। 
कलंक लगावे कुल साखधारी नांही सीर,
दाम दाम करेदेखो सात पीढ़ी सूखा है।। 
मान आलै मेल्यो खूंटी टंकी मरजादा खास,
आस है ओरां री करै कोडी ना कणूका है। 
धिक् धिक् नरां टीका दहेज धरांण धरां,
चोखा चोखा मिनख चरांण नहीं चूका है।।10।। 
होड़ा होड लगी हमै बडा बड़ी करे बात,
लेवण दहेज टीका लैण में लगत है। 
भूलवे औकात घर री टीको लेवती टेम,
बेम मांय बमै बाप बेटा रो भगत है।। 
छोडो छोडो गरीब रु रईसां टीका री छाप,
पूरण बिनासी पथ जांणवे जगत है। 
लेवण दहेज जिको पूरण करे पाबंद,
करात टीका रौ कौल रुलतो रगत है।।11।। 
                      खूंद खूंद भरै खूब सारा देहीज सिंदकू,
टीको मूंडै माग्यो देय देवकन्या दीनीं है। 
सुन्दर सुसील गुणवंती सुबरण गौर,
गैणां मांय सराबोर कोल पितु कीनीं है।। 
थोड़ी थोडी कहत जंवाई सगौ नांय थके,
लाव लाव करे नकटाई धार लीनी है। 
भरत अरूची हिये सगे अनादर भाव,
गाल्यां सुण पीहर री वधु रोय रीनो है।।12।। 
भणत भाजन वधु कोप सुसराल केरौ,
अबोला पति रा देख नाक नाक आई है। 
जुंगल जतावे नहीं लागे काम काज जीव,
ओछा पोचा सुण मोसा पीहर सिधाई है। 
उदासी चांद सेमुख पिता नै कियो उदास,
बित्योड़ी हालत नैणां नीर सूं बताई है। 
आयो केी दिना पछे सगे जंवाई संदेस,
म्हारे नहीं खटेगी आ कुलखणी लुगाई है।।13।। 
कारण दहेज टीके आत्महत्या करै केई,
केई कन्या काई व्हेय कूप में कूदत है। 
नदियां तलाब डूब जाय नारी दुखी नाम,
अपराध देख जग जग आंखियां मूंदत है।। 
़लाव लाव छोडो नरां टीकारू दहेज लेण,
राव अरू रंक दिये घाव ही रुदत हे। 
कुरीती टीका री कोजी क्लेसी समाज काण,
हांण सूं बचो बचावो होय रही हद है।।14।। 
                      नसा-निवारण 
दारू कारू देहरी, सतरू नाम सराब। 
मद बदनामी मानखे, जुलमी काय जवाब।। 
जुलमी काय जवाब आम सूं आंतरा। 
महफिल दारू मांयमिलै हर भांतरा।। 
प्यालौ गरल पिलाय मौत मनवारियां। 
दालद रो दरसाव धरा मद धारियां।।1।। 
पावन भावन मन प्रबल, भारत वाली भोम। 
धरा सुधा किंम धारियो, जांण गरल मदजोम।। 
जांण गरल मद जोम कोम सब कोड में। 
बस होवे बरबाद होडा होड में।। 
पूरण मद परताप चूक कर ना चखो। 
बणियो हीण बिवेक मति भ्रस्ट मानखो।।2।। 
सगाई विवाहां सबै, मद री है मनवार। 
मरियो सोग मिटांवण नैं, तिणदिन दारू त्यार।। 
तिण दिन दारूत्यार काफी कुरीतियां। 
होवे घ घ हांण रू पाले प्रीतियां।। 
धाप अरू ना धीर रू सीर सराब में। 
कुल रो एम कलंक रू खोटो ख्वाब में।।3।। 
कम वय में धारणकियो,हारण जीवण हाय। 
दारू में दपटीजगा, कोजी बिगड़ी काय।। 
कोजी बिगड़ी काय धूजता धासणो। 
सपकै ऊठै सासं हुवै रिपू हासणो। 
सिर में सदैव दरद रू चक्कर चालसी। 
अध बिच जोबन आय मौत में मालसी।।4।। 
जोबन में दारू जबर, खबर लाहे पछ खास। 
सबर न आवे सांत्वना लबर जीवतो लास।। 
लबर जीवती लास भोम बोलायदी। 
गहणै गांठै घरां रू लाय लगायदी। 
फाट्या बिस्तर फिरै टूटिया टापरा। 
मद इतरा परताप इला पर आपरा।।5।। 
बरस साठ बोलावियां, डुलै सराबो डैंण। 
मांरू हितु फेरु मरै, देखो भारी दैंण।। 
देखो भार ीदैण, हरी सूं हेत ना. 
विरत तामसी वले, चंडाली चेतना।। 
करे मरणो कबूल देखलो दोसती। 
मद फिर वे बण मौत रू मिणिया मौसती।।6।। 
गाड़ी छकड़ो घासिया, ठेका मांही ठीक। 
धीरे बेचे यूं धरा, पीवण वाली पीक।। 
पीवण वाली पीक रू ढां़ढा ढ़ोरिया। 
बेच्ा कर कर कोड रू समता खोरिया।। 
बालै बैठो धरांह सबां री आंतड़ी। 
अजै न धारियो आप बिताई बातड़ी।।7।। 
नामी मिलगी नौकरी, पूरबले परताप। 
दारू नै निज देह में, अपणा लीनी आप।। 
अपणा लीनी आप तमायत तावणो। 
ओरु दारू अरोग'क ओपिस आवणो।। 
आखी मिटगी आभ गिणै नीं गांवरा। 
ारत वासियां नै ज सुमत्त दै सांवरा।।8।। 
जमी दुकानां जोर री, काफी कारोबार। 
संगत खोटी सीखगा, मद पीवण मनवार।। 
मद पीवण मनवार दुकानां दुमनी। 
लाग्यो इसड़ो लार सराबी घर सनी। 
सारो ही सामान क ठेको ठामले। 
ताला लगै तुरन्त कांई सुख पायले।।9।। 
दारू रूप है दालदी, कलह तणो है कुन्ज। 
अपजस रो आगार ओ पोचा करमां पुन्ज।। 
पोचा करमां पुन्ज भारती भाइयां। 
बपरावो मत भूल आन्तुक आइयां।। 
सांची देवूं सीख किता दिन जीवणो। 
भजो हरी सद्भवा दारू न पीवणो।।10।। 
                      अमल अफीम भार इला, कमल बदन कुम्हलाय। 
लेवण री घर लोगड़ां, लागी जवरी लाय।। 
लागी जबरी लाय बुझै ना बावली। 
बहवै घ घर भलेह अजब अंतावली।। 
जुवा बूढ़ां जेम घरे पग धूजता। 
बूढ़ां रा बेहाल सुवे वे सूजता।।11।। 
हेवा जोबन में हुवा, लेवा अमली लार। 
केवा कडे कुटुम्ब रा, सेवा ना सतकार।। 
सेवा ना सतकार आगन्तुक आवियां। 
एक अमल मनवार पूर दुख पावियां।। 
संज खूटगो सोय क घाटौ गेह नैं। 
रोय जीवतां नार दवीदर देह नैं।।12।। 
भेला हुय हुय बांटले, गालै अमल घणोह। 
आपस री मनवार असब, झुकवै जणो जणोह।। 
झुकवे जो जणोह क आखिर ऊगियो। 
दालद घर रू देह क पूरो पूगियो।। 
पोचा है परिणाम कालो न काम रो। 
मिले घणा इकमनां घणो दुख ग्राम रो।।13।। 
अमली घणा उडीकवे, मोसर ौसर मांय। 
अणमप हीज अरोगियो, उदर आफोर आय।। 
उदर आफरो आय कब्ज सूं कूकिया। 
तर तर जोबन तलेह क साजन सूकिया।। 
समझो म्हारा सैण लहो मत लेणियो। 
दुरबिसनां व्हौ दूर कोई नीं केणियो।।14।। 
चलू भर मीत चसोड़णो, कालो रूप कराल। 
जोवन बालौ जावसी, गौरी काढै गाल।। 
गौरी काढै गालल क नकटा नाम रा। 
खूंदै बैठा खाट कीं नीं काम रा।। 
करमां पोचां काज लालसा आ लगी। 
मिनखा तन री मौज अलम में आंथगी।।15।। 
कुण नाहणो धोणो करे, बड़ियां बिस्तर बीच। 
जूवां माथै जुलवलै, (ज्यूं) कीड़ां कादै कीच।। 
कीड़ा कादै कीच र संज्ञा बायरा। 
कांी जतन करेह कुमाणस काम रा।। 
जीमां अमल जरूर सोय दुख सेवणा। 
भूमी ऊपर भार र लपकै लेवणा।।16।। 
भांगां पो पी बिगड़िया, नकटा सिव रे नाम। 
नसो हरी करता नहीं, कलजुगियां रा काम।। 
कलजुगियां रा काम ओट हरी आयनै। 
मन री खोटी मौज र कौजी काय नै।। 
सेवन भांगां सरल बिरत बद बैवणी। 
मुसकिल है घणान क लहरां लेवणी।।17।। 
भूंडा आश्रम भेलिया सिवालय 'र सराय। 
घोटण भांगां गेलिया, सिलाड्यां सरकाय।। 
सिलाड्यां सरकार र बुक्या बामला। 
भंगेड़ी ढिग भांग र आय उंतावला।। 
छाणै जीवण छली परा बे पांण रा। 
सारा बाय सुराय कखोटा खांण रा।।18।। 
झपके लोटा झेलिया, आवै पुनः उंताल। 
गोला उदरै घालिया, जबर भंगेड़ी जाल। 
जबर भगेड़ी जाल फेर घण फैलियो। 
बालक जुवा बृद्ध क जोरां झेलियो।। 
हुयगो भगती हीण रू मन्दिर मांयली। 
चोकड़ॢयां चंडालक ठोड़ां ठायली।।19।। 
भांगा पी पी घर भड़े, लड़े नर आय। 
टोटा मोटा टंकरा, खोटा रोटा खाय।। 
खोटा रोटा खाय पेट पंपोलता। 
रोवे हँसे रिसाय लेगाई घोलता।। 
करो दुरबिसनीह त्यागण त्यारियां। 
छोडो भांगां छैल क पेल पुजारियां।।20।। 
गांजा सुलफा रे घमा, म्हे हुयगा आधीन। 
नरक जमारो जीवतां, कोजो लोके कीन।। 
कोजो लोके कीन रु मेला मोकला। 
न्हावे धोवे नाम र भीतर खोखला।। 
आंख्या सूझ र एम र पड़गी पील री। 
हालत देखो हायक डुलता डील री।।21।। 
तन हारे धारे तड़फ लारे टोटो लेय। 
भगती नसो बिगाड़ दी, सुलफो गांजो सेय।। 
सुलफो गांजो सेय धापती धूणियां। 
भगती हीण विवेक क जबरी जूणियां।। 
मोडा साधू मांड क चिलमां चाडवे। 
आं ढिग पी पी ओर क लोकां लाडवे।।22।। 
घर सूं काडै गालियां, बाबा ढिग मत बैठ। 
गांजो सुलफो गांव में, परी उठासी पैठ।। 
परी उठासी पैठ क ताकत तोड़सी। 
हुय पुरसारथ हीण मुखां कज मोड़सी।। 
जीवण हुयसी जहर परो दुख पावसी। 
बाबा ढिग बाबोह तुंही बण ज्यावसी।।23।। 
टाबर कूकै टापरै, कपड़ो रोटी केत। 
परणी दांतड़ पीसती, रे घाले सिर रेत।। 
रे घालै सिर रेत नसेड़ी, नीचता। 
खूंदै बैठो खाट पूरड़ा पींचता।। 
गोजां में गेलीज भूखड़ी भांजसी। 
परणी बाल पराया ठीकर मांजसी।।24।। 
अब ए नसो उपाबियो, पढिया लिखिया पूत। 
हिरोइन हसीस सूं ऐ नीं रिया अछूत।। 
ऐ नीं रिया अछूत विदेसी बापरै। 
मूंगी धरां मंगाय अरोगे आपरै।। 
मौत लिरावै मोल जीव छौ जावतो। 
बिन मिलायं बेकार तमायत तावतो।।25।। 
होका चिलमो हांण री मत पीवो मनवार। 
तन धन नै तड़ाफावसी, बास पास बेकार।। 
वास पास बेकार अमूझै आतमा। 
किराय बसू केि क मोटा मातमा।। 
सांस उठाय सवाय क खोटो खांसणो। 
चित में चढी चिलम क होको चासणो।।26।। 
भर दे थू थू भवन नै, जरदो खोटो जांण। 
बत्तीसी छवि बिगाड़ दी, पीसी हातां पांण।। 
पीसी हांता पांण क जाल फैलाविया। 
इण फन्दे में आज अणूता आविया।। 
जरदा यूनियन जोर हुई अब हिन्द में। 
मसले घ घर मोय करां अरबिन्द में।।27।।                      
                      भाग्य प्रभा 
                        छन्द मोतीदाम 
बणूं परभा जग में बड भाग। 
रजा करतूत मती वसु राग।। 
तवूं तकदीर तणी ताहरीफ। 
दिपै इह कारण जीवन दीप।।1।। 
लिखे विधा करमां नर लेख। 
दुड़ावत दौड़ दरोदर देख।। 
उपावत भाग मझां विधि अंक। 
नरां मटिसी नहँ रै'ह निसंक।।2।। 
ब्रह्मा चतुरायन रे बसु बात। 
रहे विधि हाथ सबै दिन रात।। 
उड़ेलत जेण सुबुद्धीय आप। 
पूजीज रया नर तेण प्रताप।।3।। 
छलावत अंक निपोचिय गेल। 
खलक्क मझां दुख खेलत खेल।। 
बेण पुरसारथ जां नर भाग। 
रहे उणरे सुख जीवण राग।।4।। 
पड़े उठवे जग में विधि पांण। 
सुरा सठ कोविद राह सुजांण।। 
सबां दिल मांयरही हिक सूझ। 
भली बुरी भाग करावत बूझ।।5।। 
समै बदलै वसु भाग सदैव। 
बणे बिगड़़ै मत जवीण वेव।। 
इसी चरचा जग आदिय अंत। 
पखो जग मायं किसो इज पंथ।।6।। 
अखां करलां जग मांय उपाय। 
पड़े नहीं पार बुरा दिन पाय।। 
सको बणवे सद भाग संजोग। 
लारे फिरवे कज सारण लोग।।7।। 
दुनी दुख झेल रया हुय दीन। 
किता विधि देव कुदृस्टिय कीन।। 
छबी हिरदे बडभाग छबाय। 
नमै जग तोइज लायक नाम।।8।। 
कियो इसड़ो बड़ भाग कमाल। 
निचा करतां कज होवत न्याल।। 
मती पथ हीण पेला गत मोल। 
छबी परभा चढ़गी अब छोल।।9।। 
अखा रहना हुकमां ज अधीन। 
लखां बहता मसती मझ लीन।। 
बिगाडत भाव तिको बड भाग। 
कयां भवनां मझ कूकत काज।।10।। 
तपै घम जोतिय पौरस तोर। 
असी जिणरी परभा चहुं ओर।। 
घड़ी मिटगी गत गौरव गाथ। 
परवां इसडा पड़िया बिच पाथ।।11।। 
जोवो इतिहास इणी गत जोर। 
तपै बड भाग सबै जग तोर।। 
पड़ै परभाव नरां सुरपाल। 
किसो बचियो ई सूं कोणव काल।।12।। 
समै दिनमा्न विजोग संजोग। 
भला वसु भागिय भोगत भोग।। 
पखां इणरो कुण पावत पार। 
अखूं परभा इण भाग अपार।।13।। 
रया बडभाग धरा मझ राम। 
किया उपकार नरां भल काम।। 
करी जद भाग इसीय कुमेर। 
फिरे सिय बेघर सोधत फेर।।14।। 
रिया बड भाग ज रावण राज। 
किये मन भावत चावत काज।। 
लगी जद भाग कुदृस्यिय लार। 
हुवे सब खंडित दंडित हार।।15।। 
जमी हिम जेण अनीतिय जेथ। 
खपे दल दानव मानव खेत।। 
करी बड भाग तणी सिर कैर। 
खलां दल दाग रिया बद खैर।।16।। 
घले मिनखां सुर भागिय घाव। 
इसूं बचिया न कितै उमराव।।। 
दरो दर देखलहो दरसाव। 
बढ्या दसमाथ सुभागिय भाव।।17।। 
पताल अकास धरा मझ पोख। 
लखां नहीं खालिय इसूंय लोक।। 
नरां असुरां अर देव निहार। 
अखा सरवे कज भाग्य अपार।।18।। 
दिरावत भाग्य दरो दर दान। 
मही करवे नृप मंगण मान।। 
लड़े रणसूर हुवा वसु लेक। 
दाखे कविराज गति मत देख।।19।। 
इसां रांय भाग्य चली इतियास। 
रुलै बणवे इसूं जीवण रास।। 
करामात इसुं बचे नहीं कोय। 
जगां जग जाय लहो सब जोय।।20।। 
सती सत राख रही इण सेह। 
दुनी मझ देख जलावत देह।। 
जलै मझ किस्मत जोहर जोर। 
तपे इसुं नारिय जुधव तोर।।21।। 
                      लहे धस मौज वसू बड लेख। 
दुनी अचुँभे कर वे सुक देख।। 
नभां अड़ता घर माथ निकेत। 
दुरो घण सूंई दिखाइय देत।।22।। 
लहे हुकमां सिर हाजर लोग। 
भणी घण भांमिय भोगत भोग।। 
खुलै नहीं अंख रया मस्त खेल। 
पतो नई सांझ सवेरिया पेल।।23।। 
सजी सुमनां ढिग सोवण सेज। 
झटोझट नींद लहे न जेज।। 
रया रितु रे अनुकूल रै वास। 
वसे भवनां मझ सौरभ वास।।24।। 
दरी मखमल्ल बिछावण देख। 
रही अदगी पग भीतर रेख।। 
चले नहें पैदल पावंडा च्यार। 
खड़ी दरवाजांय मोटर कार।।25।। 
जगां पग आप जिणी दिस जाय। 
प्रभा घम आदर सादर पाय।। 
इसी सब किस्मत रै आधीन। 
मनो इण में न मेख न मीन।।26।। 
सका कज भगा करावत सैल। 
गिरै उठवे सब भावज गैल।। 
वसू लिछमी रह वे नित भाग। 
इरो वणिकां घर में अनुराग।।27।। 
खड़े किरसांण सधारण खेत। 
दया सद भाग घमओ अन देत।। 
करे अचंुभो कर देखत केक। 
रही सुभ भाग्य तणी मझ रेख।।28।। 
भरे भरपूर अनाज भंडार। 
उभी सुरभी घर भैंस अपार। 
उठा फिरबा हित अस्वर ऊँट। 
चावी तिणरी सुखमा चहुं कूंट।।29।। 
किया उलटा सुलटा हुय काम। 
न को तिणनै कर वे बदनाम।। 
हलै कर जोड़त लोग हजार। 
बड़ी सुखमा घर बार बजार।।30।। 
सका नर जोय रया मुख सांम। 
करे मन भावत चावत काम।। 
डटी तिण रे कण सासण डोर। 
जदे चमके रिव किस्मत जोर।।31।। 
भला हुय भाग सबै भली बात। 
उपै पथ उन्नत रो अवदात।। 
कदे जद कोप रू भाग्य कुमेर। 
देखो लगवे न बिनासिय देर।।32।। 
नरां जद होवत भाग्य नाराज। 
कियां सुलटा उलटा हुय काज।। 
रिपु तनरो कपड़ो हुय रेय। 
लाखां जग में बदनामिय लोग।।33।। 
नवो नित क्लेस करे घ नार। 
अखी हुय दोलुंय संसति आर।। 
चवे नहें आदर पामणाचार। 
दुनी बहनां तनुजा तिण द्वार।।34।। 
चढ़े लहमओ सिर सूखत चाम। 
दरोदर हाथ न लागत दाम।। 
अड़े सुभ औसर मौसर ओर। 
लहावत भूंडज लौकिक लोर।।35।।                      
                      पढ़े नहीं टाबर हाजर पूर। 
दिनो दिन नीत सु होवत दूर।। 
कई कुल मांय लगाय कलंक। 
रहे घर ऊपर छापज रंक।।36।। 
नसा कर देह करे घण नास। 
अबे नहं जीवण री सुभ आस।। 
राले सिर ऊपर लोग ज रेत। 
दसां बद हालत किस्मत देख।।37।। 
खड़ो कर डोर रयो घण खांच। 
नचावत भाग्यअखे जग नाच।। 
नरां चर जोवरो किस्मत नाथ। 
हुवा कठपूतल किस्मत हाथ।।38।। 
नमो तव किस्मत आदिय नाम। 
करावत तूं जग में सब काम।। 
तुंही घर ग्यान विज्ञान सतेज। 
सका सनमान तुंही सुख सेज।।39।। 
तुही अन आभ अखे धन आस। 
रजा तव होय आवे जग रास।। 
तुही सुभ अस्सुभ रो संकेत। 
रमे चकूंट अणु कण रेत।।40।। 
इला जल आग हवा असमान। 
घमओ सबरो कर किस्मत ध्यान।। 
तुंही दिनमान चले गत दौर। 
जुहारत लोग तुही जग जोर।।41।। 
करो अब मेर कहे कविराज। 
अखा दुख मेट दहो सुख आज।। 
भली निजरां सुंय सेबग भाल। 
सको पथ उन्नत देहुं सभाल।।42।।                      
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